हर वक्त मैं सोचा करता था, जींदगी की किंमत क्या है शायद आज जान गया हुं मैं जब कि मैंने अपने प्यारे पिताजी ( हरीदत्त त्रिपाठी, ससुरजी) को खो दिया है, जींदगी बहुत अनमोल होती है यारो.. ये मुजसे बहेतर कौन जान सकता है, किस्मत वालो को मनुष्य का जन्म मिलता है और किस्मत वाले ही उसे सार्थक कर पाते है, अक्सर लोग अपने लिए जीते है, लेकिन मेरे पिताजी (ससुरजी) कुछ अलग ही प्रतिभा और सोच रखते थे, खुदसे भी ज्यादा वो लोगो की फिकर करते थे। शायद इसीलिए पीछले 2 बार से निर्विवादित निर्वाचीत प्रधान (पीछोरा गाँव, माटीनगंज, आजम़गढ, उत्तर प्रदेश) थे । और लोगोके बीच उनकी चाहना बहुत अधिक थी ।
पलभर की चाहत उनकी मेरे रुहमें बस गई,
सांसे तेज थी उनकी और जींदगी वहीं ठहर गई,
मेरे वो अपने का दम मेरे सामने टुट गया,
आज लगा खुदा मुजसे फिर रुठ गया...
कितना बदकिस्मत हुं मैं जो उनके आखरी दर्शन पास रह कर भी ना कर पाया था, घटना कुछ एसी घटी थी के मेरे पिताजी (ससुरजी) पीछले कुछ वक्त से बीमार थे, जिन्हे देखनेको मैं 5 जनवरी 2013 को साबरमती एक्सप्रेस से लखनउ गया था और पिताजी (ससुरजी) वहाँ संजय गांधी पोस्टग्रेज्युएट इन्स्टीट्यूट (पी.जी.आई.) में एडमिट थे जिन्हें मैं 7जनवरी 2013 को देखने वहाँ पहुंचा था वहाँ मैने पिताजी (ससुरजी) की हालत देखी और अपनी सुध खो बैठा था, देख कर ही बहुत बेचैन था उन्होने मुजे देखते ही पहचान लिया था, देख कर बहुत ही बेचैन था करीब 2.14 PM को जब मैं नीचे जा रहा था तभी अंजनीभईयाने दुखद समाचार दिया, मैंने और भईयाने सभी को बड़ी हिम्मत से संभाला लेकिन हमभी तो इंसान थे सदमे के मारे थे, नहीं जानता था जो हुआ वो सही था या गलत लेकिन मैं नहीं चाहता था कि एसा कुछ हो, मैं क्या कोई भी नहीं चाहता था की कोई अनहोनी हो, लेकिन एक बार फिर खुदाने दुवाओं को ठुकरा दिया, और पिताजी (ससुरजी) के हजारो सपने अधुरे रख छीन लिया हमसे,
सांसे तेज थी उनकी और जींदगी वहीं ठहर गई,
मेरे वो अपने का दम मेरे सामने टुट गया,
आज लगा खुदा मुजसे फिर रुठ गया...
कितना बदकिस्मत हुं मैं जो उनके आखरी दर्शन पास रह कर भी ना कर पाया था, घटना कुछ एसी घटी थी के मेरे पिताजी (ससुरजी) पीछले कुछ वक्त से बीमार थे, जिन्हे देखनेको मैं 5 जनवरी 2013 को साबरमती एक्सप्रेस से लखनउ गया था और पिताजी (ससुरजी) वहाँ संजय गांधी पोस्टग्रेज्युएट इन्स्टीट्यूट (पी.जी.आई.) में एडमिट थे जिन्हें मैं 7जनवरी 2013 को देखने वहाँ पहुंचा था वहाँ मैने पिताजी (ससुरजी) की हालत देखी और अपनी सुध खो बैठा था, देख कर ही बहुत बेचैन था उन्होने मुजे देखते ही पहचान लिया था, देख कर बहुत ही बेचैन था करीब 2.14 PM को जब मैं नीचे जा रहा था तभी अंजनीभईयाने दुखद समाचार दिया, मैंने और भईयाने सभी को बड़ी हिम्मत से संभाला लेकिन हमभी तो इंसान थे सदमे के मारे थे, नहीं जानता था जो हुआ वो सही था या गलत लेकिन मैं नहीं चाहता था कि एसा कुछ हो, मैं क्या कोई भी नहीं चाहता था की कोई अनहोनी हो, लेकिन एक बार फिर खुदाने दुवाओं को ठुकरा दिया, और पिताजी (ससुरजी) के हजारो सपने अधुरे रख छीन लिया हमसे,
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