09 July 2009

आज हाईकोर्ट ने आदेश दे दिया है कि समलैंगिकता जायज है,
और इसी के साथ भारतमें रहने वाले लोग जो कि सजातीय है उन सभी लोगो में अनंद की लहर छा गई, वो जोरो से जस्न मनाने लगे वो जस्न शायद उनकी जीत था शायद समाज की हार का था शायद संस्कृति के नाश का था ।
इन्सान को बनाने वाला भगवान शायद पागल ही था जो उसने स्त्री औप पुरुष अलग अलग बनाये आज मान गया कि उपर वाला भी बेवकुफ है । शायद दो दिन पहले कि बात है इंडिया टीवी पर एक बहेस चल रही थी जिसमे कई लोग सामिल थे जो कहे रहे थे कि आगर वो एक दुसरे से प्यार करते है तो वो एक क्यों नहीं हो सकते इसका जवाब तो शायद मैं न दे सकुं लेकिन मेरे मन में एक प्रश्न तो उठता है सायद कोई इसका जवाब दे सके अगर एक पुरुष एक पुरुष से प्यार कर शादी कर सकता है और एक स्त्री एक स्त्री से कर सकती है तो एक ऐसे प्रोवीसन का विधान होना चाहिए की हर प्यार करने वाला अपने प्यार को पाये जब वो प्यार की दृष्टिसे तो ये सही है ना, चाहे उसका प्यार पुरुष हो या स्त्री हो या कोई जानवर हो या कोई निर्जीन चीज, इससे तो कोई फर्क ही नहीं पडता ना हा शायद विज्ञान को इसका फायदा मिलेगा रोज कुछ नये जीव मिलेंगे प्रयोगो के लिए
और एक फायदा तो समाज को होगा कि समलैंगिक लोगो को तो बच्चे नहीं होंगे तो आबादी घटेगी और जिन्हे बच्चा चाहिए वो अनाथ आश्रम से लेंगे तो भी समाजकी सेवा ही होगी

आप इस मामले में क्या सोचते हैं क्या आप समलैंगिकता के पक्षमें है या विपक्ष में मैं जरुर से जानना चाहुंगा

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